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शरवणभव गुह शरवणभव गुह
शरवणभव गुह पाहि गुरो गुह ॥
अखिलजगज्जनिपालननिलयन
कारण सत्सुखचिद्घन भो गुह ॥ १ ॥
आगमनिगदितमङ्गलगुणगण
आदिपुरुषपुरुहूत सुपूजित ॥ २ ॥
इभवदनानुज शुभसमुदययुत
विभवकरम्बित विभुपदजृम्भित ॥ ३ ॥
ईतिभयापह नीतिनयावह
गीतिकलाखिलरीतिविशारद ॥ ४ ॥
उपपतिरिवकृतवल्लीसङ्गम –
कुपित वनेचरपतिहृदयङ्गम ॥ ५ ॥
ऊर्जितशासनमार्जितभूषण
स्फूर्जथुघोषण धूर्जटितोषण ॥ ६ ॥
ऋषिगणविगणितचरणकमलयुत
ऋजुसरणिचरित महदवनमहित ॥ ७ ॥
ॠकाराक्षररूप पुरातन
राकाचन्द्रनिकाश षडानन ॥ ८ ॥
लुकाररूपोपकारसुनिरत
विकाररहितापकारसुविरत ॥ ९ ॥
लूकाराकृति शोकापोहन
केकारवयुत केकिविनोदन ॥ १० ॥
एडकवाहन मूढविमोहन
ऊढसमभुवन सोढसदकरण ॥ ११ ॥
ऐलबिलादिदिगीशबलावृत
कैलासाचललीलालालस ॥ १२ ॥
ओजोरेजित तेजोराजित
आजिविराजदरात्यपराजित ॥ १३ ॥
औपनिषदपरमात्मपदोदित
औपाधिकविग्रहतामुपगत ॥ १४ ॥
अंहोनाशन रंहोगाहन
ब्रह्मोद्बोधन सिंहोन्मेषण ॥ १५ ॥
अस्तविशस्तसमस्तमहासुर
हस्तसततधृतशक्तिभृतामर ॥ १६ ॥
करुणाविग्रह कलितानुग्रह
कटुसुतिदुर्ग्रह पटुयतिसुग्रह ॥ १७ ॥
खण्डितचण्डमहासुरमण्डल-
मण्डितनिबिडश्यामलकुन्तल ॥ १८ ॥
गङ्गासम्भव गिरिशतनूभव
रङ्गपुरोभव तुङ्गकुचाधव ॥ १९ ॥
घनवाहनमुख सुरवरवन्दित
घननादोदित शिखिनटनन्दित ॥ २० ॥
ङवमानधनुर्मौर्वीरवरत
पवमानधृतव्यजनकृतिमुदित ॥ २१ ॥
चरणायुधधर करणावृतिहर
तरुणाकृतिवर करुणासागर ॥ २२ ॥
छेदित तारक भेदित पातक
खेदित घातक वाञ्छितदायक ॥ २३ ॥
जलजनिभनयन खलमनुजमथन
बलिदनुजमदन कलिकलुषशमन ॥ २४ ॥
झषकेतनसम वृषकेतनरम
मिषचेतनयम वृषकारिसुगम ॥ २५ ॥
ज्ञातागमचय धूताघनिचय
वीतषडरिरय गीतगुणोदय ॥ २६ ॥
टङ्कारागत कङ्कात्ताहित
झङ्काराढ्यालङ्कारावृत ॥ २७ ॥
ठाकृतिराजित हाटककुण्डल
स्वाकृतिरेजित घोटकमण्डल ॥ २८ ॥
डिम्भाकृतियुत रम्भानटरत
जम्भारिविनुत कुम्भोद्भवनुत ॥ २९ ॥
ढक्कारवकृत धिक्काराहित
दिक्कालामित हिक्कादिरहित ॥ ३० ॥
णकारतरुसुम निकाररतिदम
णकारयुतमनुजपविहितागम ॥ ३१ ॥
तापत्रयहर कालत्रयचर
लोकत्रयधर वर्गत्रयकर ॥ ३२ ॥
स्थिरपददायक सुरवरनायक
निरसितसायक निरुपमगायक ॥ ३३ ॥
दान्तदयापर कान्तकलेबर
भ्रान्तं मां तर शान्तहृदयवर ॥ ३४ ॥
धीरोदात्त गुणोत्तर जित्वर ।
धीरोपासित वित्तमहत्तर ॥ ३५ ॥
नववीराहित सवयोविहसित
भवरोगावृतमनुजजिहासित ॥ ३६ ॥
पुष्करमालावासितविग्रह
पुण्यपरायण विहितपरिग्रह ॥ ३७ ॥
फाललसन्मृगमदतिलकोज्ज्वल
कलिमलतूल सुवातूलातुल ॥ ३८ ॥
बन्दीकृतसुरबृन्दानन्दन
वन्दारु मनुज मन्दारद्रुम ॥ ३९ ॥
भवतागमितः कारागारं
प्रणवाविदितश्चतुरास्योरम् ॥ ४० ॥
महनीयमहावाक्योद्घोषित
कमनीयमहामकुटोद्भूषित ॥ ४१ ॥
योगिहृदयसरसीरुहभास्वर
योगाधीश्वर भोगविकस्वर ॥ ४२ ॥
रक्षोशिक्षणकृत्यविचक्षण
रक्षणदक्षकटाक्षनिरीक्षण ॥ ४३ ॥
लोलदुकूलाञ्चलवादाञ्चल
बालकुतूहल लीलापेशल ॥ ४४ ॥
वलवैरिसुताचरितापहसित
लवलीतिमता भवतो वनिता ॥ ४५ ॥
शूलायुधधर कालायुतहर
मालायुतभर हेलायुतकर ॥ ४६ ॥
षट्कोणस्थित षट्तारकसुत
षड्भावरहित षडूर्मिघातक ॥ ४७ ॥
सुब्रह्मण्योमिति निगमान्तो
वदति भवन्तं प्रणवपदार्थम् ॥ ४८ ॥
हारावलियुतकाराहृतसुर
धारारतहय नियुत नियुतरथ ॥ ४९ ॥
ललितकरकमल लुलितवरवलय
दलितासुरचय मिलितामरचय ॥ ५० ॥
क्षणभङ्गुरजगदुपपादनचण
वेदविनिश्चित तत्त्वजनावन ॥ ५१ ॥
नीलकण्ठकृत वर्णमालिका
प्रीतये भवतु पार्वतीभुवः ॥
इति नीलकण्ठकृत श्रीसुब्रह्मण्याक्षरमालिका स्तोत्रम् ।
इतर श्री सुब्रह्मण्य स्तोत्राणि पश्यतु ।
గమనిక: రాబోయే ధనుర్మాసం సందర్భంగా "శ్రీ కృష్ణ స్తోత్రనిధి" ముద్రించుటకు ఆలోచన చేయుచున్నాము. ఇటీవల మేము "శ్రీ సాయి స్తోత్రనిధి" పుస్తకము విడుదల చేశాము.
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